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इस चर्चा को हवा तब मिली जब डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान को यह भरोसा दिलाया कि यदि वे इस तेल को निकालने में सफल हो जाते हैं, तो वे "दुबई जैसा देश" बन सकते हैं और इतना धन कमा सकते हैं कि भारत भी उनसे तेल खरीदने लगेगा।
लेकिन इन बड़े-बड़े सपनों के पीछे सच्चाई क्या है? क्या यह दावा हकीकत पर आधारित है या सिर्फ एक राजनीतिक भ्रम है?
आर्टिफिशियल आइलैंड (Artificial Island) का नया प्रोजेक्ट
तेल खोजने और निकालने के लिए पाकिस्तान ने समुद्र में 30 किलोमीटर दूर एक कृत्रिम द्वीप (Artificial Island) बनाने की योजना तैयार की है। उनका कहना है कि इस आइलैंड से ड्रिलिंग करने पर खर्च लगभग 35% तक कम होगा। पाकिस्तान की सरकार इस प्रोजेक्ट को एक ऐतिहासिक कदम बता रही है, जिसकी अनुमानित लागत करीब 42,000 करोड़ रुपये बताई जा रही है।
सरकार का दावा है कि यह "गेम चेंजर" साबित होगा, लेकिन क्या वास्तव में ऐसा हो सकता है?
दावे पर संदेह क्यों?
अंकित अवस्थी सर ने इस प्रोजेक्ट पर कई गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने याद दिलाया कि यही कहानी 2019 के 'केकरा' (Kekra) प्रोजेक्ट के समय भी सुनाई गई थी। उस वक्त भी कहा गया था कि अरब सागर में भारी तेल भंडार मिल चुका है, लेकिन बाद में पता चला कि यह दावा पूरी तरह झूठा था।
इसके अलावा, तेल क्षेत्र की दिग्गज कंपनियां जैसे शेल (Shell) और टोटल (Total) पहले ही पाकिस्तान से अपना निवेश समेट चुकी हैं। सवाल यह उठता है कि जब विश्व की बड़ी ऊर्जा कंपनियाँ पाकिस्तान के तेल-गैस सेक्टर से उम्मीद छोड़ चुकी हैं, तो अचानक पाकिस्तान को "समुद्र के नीचे सोना" कैसे दिखने लगा?
अंकित सर का मानना है कि यह प्रोजेक्ट असल में कमाई का नया तरीका भी हो सकता है, जहाँ बड़े नेताओं और अधिकारियों के लिए इसमें भारी लाभ कमाने की संभावनाएँ हैं, चाहे प्रोजेक्ट सफल हो या न हो।
अमेरिकी रिपोर्ट और पाकिस्तान की लॉबिंग
पाकिस्तान की अमेरिका में बढ़ती लॉबिंग भी चर्चा का विषय है। एक अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान ने हाल के महीनों में अमेरिका में भारी रकम खर्च की है ताकि वहां के राजनीतिक और कूटनीतिक माहौल को अपने पक्ष में किया जा सके।
इसका असर यह भी दिखा कि एक हालिया हमले को अमेरिका ने ‘आतंकवादी हमला’ नहीं बल्कि ‘विद्रोही हमला’ कहा। यानी पाकिस्तान का बचाव किया गया। इससे यह संकेत मिलता है कि पाकिस्तान अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि सुधारने और अपने प्रोजेक्ट्स को वैधता दिलाने के लिए बड़े स्तर पर लॉबिंग कर रहा है।
निष्कर्ष: सपना बड़ा, भरोसा कम
पाकिस्तान का "दुबई बनने" वाला सपना एक बार फिर चर्चा में है, लेकिन जमीन पर हकीकत अभी भी संदेह से भरी हुई है:
- तेल मिलने का कोई ठोस प्रमाण नहीं है।
- 2019 की तरह यह दावा भी सिर्फ हवाई साबित हो सकता है।
- 42,000 करोड़ का प्रोजेक्ट बड़ों के लिए कमाई का जरिया बन सकता है।
- अमेरिका में लॉबिंग से पाकिस्तान की कूटनीतिक छवि तो सुधर सकती है, लेकिन तेल खुद-ब-खुद बाहर नहीं आएगा।
कुल मिलाकर, यह पूरा मामला अभी सपने और वास्तविकता के बीच उलझा हुआ है। क्या पाकिस्तान सच में समुद्र से सोना निकाल पाएगा? या यह सिर्फ एक और राजनीतिक कहानी बनकर रह जाएगी? इसका जवाब आने वाले समय में ही मिलेगा।
डिस्क्लेमर: इस पोस्ट में इस्तेमाल की गई सभी तस्वीरें AI (Artificial Intelligence) द्वारा बनाई गई हैं और केवल प्रतीकात्मक (Representational) उद्देश्य के लिए हैं।

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