Dhurandhar movie review graphic RAW vs ISI liberal gang boycott fail symbolic illustration
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नई दिल्ली/मुंबई: बॉलीवुड में अक्सर जासूसी फिल्में (Spy Movies) बनती रही हैं, लेकिन ज्यादातर फिल्मों में एक ही घिसा-पिटा फॉर्मूला होता है एक भारतीय जासूस, एक पाकिस्तानी जासूस और उनके बीच पनपता हुआ बेतुका प्यार। लेकिन कल 5 दिसंबर को  रिलीज हुई रणवीर सिंह और आदित्य धर की फिल्म 'धुरंधर' (Dhurandhar) ने इस धारणा को जड़ से उखाड़ फेंका है।

पहले ही शो के साथ सिनेमाघरों में जो तालियां और सीटियां बजी हैं, वो गवाह हैं कि भारतीय दर्शक अब 'बनावटी भाईचारे' से ऊब चुके हैं और उन्हें "सच्चाई का आइना" देखना पसंद है। लेकिन जैसे ही फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर रफ़्तार पकड़ी, सोशल मीडिया पर एक खास वर्ग यानी 'लेफ्ट-लिबरल गैंग' का रोना-धोना भी शुरू हो गया है।

आइए, जानते हैं कि आखिर इस फिल्म में ऐसा क्या है जिसने देशभक्तों का दिल जीत लिया है और भारत-विरोधी एजेंडा चलाने वालों की नींद उड़ा दी है।

1. बिना लाग-लपेट के पाकिस्तान की पोल-पट्टी खुली

'धुरंधर' की सबसे बड़ी खासियत इसकी ईमानदारी (Honesty) है। निर्देशक ने पाकिस्तान को दिखाने में कोई "सॉफ्ट कॉर्नर" नहीं रखा है। फिल्म में साफ़ दिखाया गया है कि कैसे पाकिस्तान की सेना और ISI मिलकर भारत के खिलाफ साजिशें रचते हैं। इसमें कोई 'अमन की आशा' वाला संदेश नहीं है, बल्कि यह दिखाया गया है कि पड़ोसी मुल्क की बुनियाद ही नफरत पर टिकी है। फिल्म का एक सीन, जहाँ आतंकियों को मदरसों में ब्रेनवॉश किया जा रहा है, रोंगटे खड़े कर देने वाला है। यह बिना किसी लाग-लपेट के बताता है कि कैसे युवाओं को जिहाद के नाम पर भड़काया जाता है।

2. RAW vs ISI: कोई 'लव स्टोरी' नहीं, सिर्फ 'वॉर स्टोरी'

बॉलीवुड की पिछली कई फिल्मों (जैसे 'टाइगर' सीरीज या 'पठान') में हमने देखा है कि RAW एजेंट को ISI एजेंट से प्यार हो जाता है और वे मिलकर दुनिया बचाते हैं। दर्शकों को यह एंगल हमेशा खटकता था। लेकिन 'धुरंधर' ने इस स्टीरियोटाइप को तोड़ दिया है। इसमें RAW और ISI के बीच "चूहे-बिल्ली का खेल" नहीं, बल्कि "शेर और लकड़बग्घे की लड़ाई" दिखाई गई है। फिल्म में रणवीर सिंह (मेजर मोहित शर्मा के किरदार में) का सामना जब ISI एजेंट (आर. माधवन) से होता है, तो वहां कोई डायलॉगबाजी या रोमांस नहीं होता, सिर्फ गोलियां चलती हैं। यह यथार्थवाद (Realism) ही इस फिल्म की जान है।

3. 'लेफ्ट-लिबरल' और 'फैक्ट चेकर्स' के निशाने पर फिल्म

जैसे ही कोई फिल्म भारत के शौर्य की गाथा गाती है या पाकिस्तान का असली चेहरा दिखाती है, एक खास 'इकोसिस्टम' सक्रिय हो जाता है। 'धुरंधर' के साथ भी यही हुआ है। ध्रुव राठी (Dhruv Rathee) जैसे यूट्यूबर्स और कुछ वामपंथी फिल्म समीक्षकों ने फिल्म को रिलीज होते ही "प्रोपेगेंडा" (Propaganda) और "अंध-राष्ट्रवाद" (Jingoism) का लेबल देना शुरू कर दिया है। इनका आरोप है कि फिल्म में तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है और यह दो समुदायों के बीच नफरत फैला सकती है।

लेकिन जनता अब समझदार हो चुकी है। सोशल मीडिया पर फैंस का कहना है कि जब 'कश्मीर फाइल्स' या ' केरल स्टोरी' आई थी, तब भी इसी गैंग ने विरोध किया था। दर्शकों का मानना है कि ये लोग कभी भी भारत की जीत या सेना के पराक्रम को पचा नहीं पाते। दिलचस्प बात यह है कि जितना ये 'लिबरल गैंग' फिल्म का विरोध कर रहा है, जनता उतनी ही ज्यादा तादाद में इसे देखने जा रही है।

4. रणवीर सिंह: अब तक का सबसे 'खूंखार' अवतार

रणवीर सिंह ने साबित कर दिया है कि वे सिर्फ 'लवर बॉय' या 'एनर्जेटिक स्टार' नहीं हैं, बल्कि एक गंभीर अभिनेता भी हैं। कश्मीरी आतंकी 'इफ्तिखार भट्ट' के भेष में जब रणवीर स्क्रीन पर आते हैं, तो उनकी आँखों में वो डर और संकल्प साफ़ दिखता है। उनकी दाढ़ी, पठानी सूट और बोलने का लहजा इतना असली है कि आप भूल जाएंगे कि यह रणवीर सिंह है। फिल्म का एक्शन हॉलीवुड लेवल का है, लेकिन उसमें भारतीय मिट्टी की खुशबू है।

5. आदित्य धर का डायरेक्शन: 'उरी' से भी चार कदम आगे

निर्देशक आदित्य धर ने 'उरी: सर्जिकल स्ट्राइक' से जो भरोसा कमाया था, 'धुरंधर' में उसे और बढ़ा दिया है। 2 घंटे 40 मिनट की फिल्म में एक सेकंड के लिए भी आप पलक नहीं झपका सकते। स्क्रीनप्ले इतना कसा हुआ है कि इंटरवल कब होता है, पता ही नहीं चलता। फिल्म में दिखाए गए ऑपरेशन, कोड वर्ड्स और हथियारों की डिटेलिंग बताती है कि इस पर कितनी गहरी रिसर्च की गई है।

6. डायलॉग्स जो सिनेमाहॉल में गूंज रहे हैं

फिल्म के डायलॉग्स सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके हैं। एक सीन में हीरो कहता है"हम शांति चाहते हैं, इसका मतलब यह नहीं कि हम कमजोर हैं। जिस दिन हम अपनी पर गए, नक्शे से नाम मिटा देंगे।" वहीं एक और डायलॉग है"सांप को चाहे कितना भी दूध पिला लो, वो डसने से बाज नहीं आएगा। इसलिए उसका फन कुचलना ही एकमात्र इलाज है।" ये डायलॉग्स जब रणवीर सिंह बोलते हैं, तो थिएटर में तालियों की गड़गड़ाहट रुकने का नाम नहीं लेती।

7. बॉक्स ऑफिस: पहले दिन ही रिकॉर्ड ध्वस्त

ट्रेड रिपोर्ट्स के मुताबिक, 'धुरंधर' ने पहले दिन लगभग 28 करोड़+ की ओपनिंग लेकर इतिहास रच दिया है। मॉर्निंग शोज़ में ही 90-95% की ऑक्यूपेंसी देखी गई। यह फिल्म 'गदर 2' और 'एनिमल' के बाद सबसे बड़ी मास-एंटरटेनर बनकर उभरी है। जनता का कहना है कि "पैसा वसूल" फिल्म है। विरोधियों के नकारात्मक अभियान का फिल्म पर कोई असर नहीं हुआ है, बल्कि इससे फिल्म को मुफ्त की पब्लिसिटी ही मिली है।

निष्कर्ष: क्यों देखनी चाहिए 'धुरंधर'?

अगर आप बॉलीवुड के पुराने "फर्जी भाईचारे" वाले नरेटिव से पक चुके हैं और एक ऐसी फिल्म देखना चाहते हैं जो भारत की ताकत और दुश्मन की असलियत को बेबाकी से दिखाए, तो 'धुरंधर' आपके लिए ही बनी है। यह फिल्म आपको डराती है, रुलाती है और अंत में गर्व से सीना चौड़ा कर देती है। लिबरल गैंग चाहे जो भी कहे, बॉक्स ऑफिस के आंकड़े बता रहे हैं कि 'नया भारत' अब अपनी शर्तों पर फिल्में देखना पसंद करता है। 


डिस्क्लेमर: इस पोस्ट में इस्तेमाल की गई सभी तस्वीरें AI (Artificial Intelligence) द्वारा बनाई गई हैं और केवल प्रतीकात्मक (Representational) उद्देश्य के लिए हैं।