3D bar graph showing Kerala election results with BJP bar highest at 50 seats LDF at 29 and UDF at 19 with Kerala map background
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तिरुवनंतपुरम/नई दिल्ली: भारतीय राजनीति में अक्सर कहा जाता था कि विंध्याचल पर्वत के नीचे, यानी दक्षिण भारत में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए दरवाजे बंद हैं। केरल को तो वामपंथियों (LDF) और कांग्रेस (UDF) का ऐसा अभेद्य किला माना जाता था, जिसे भेदना नामुमकिन था। लेकिन आज के स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजों ने इन सभी राजनीतिक पंडितों की भविष्यवाणियों को गलत साबित कर दिया है। देश के सबसे साक्षर राज्य की राजधानी, तिरुवनंतपुरम में जो हुआ है, वह महज एक चुनाव परिणाम नहीं, बल्कि केरल की राजनीति में एक नए युग की शुरुआत है।

राजधानी तिरुवनंतपुरम नगर निगम के नतीजों ने सबको चौंका दिया है। दशकों से चले रहे एलडीएफ और यूडीएफ के वर्चस्व को ध्वस्त करते हुए बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। यह जीत इसलिए भी मायने रखती है क्योंकि यह कोई छोटा-मोटा कस्बा नहीं, बल्कि राज्य का प्रशासनिक केंद्र है। 'राजनेतिक रिपोर्ट' आज विश्लेषण कर रहा है कि कैसे अमित शाह की रणनीति ने केरल के तट पर 'भगवा' लहरा दिया है और इन आंकड़ों के क्या मायने हैं।

1. आंकड़ों ने दिया सबको झटका: 101 में से 50 पर बीजेपी का कब्जा

तिरुवनंतपुरम नगर निगम के चुनाव परिणाम किसी सुनामी से कम नहीं हैं। चुनाव आयोग द्वारा जारी अंतिम आंकड़ों के मुताबिक, निगम की कुल 101 सीटों (वार्डों) का गणित पूरी तरह बदल गया है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए 50 सीटों पर जीत दर्ज की है। यह बहुमत के जादुई आंकड़े (51) से सिर्फ 1 सीट दूर है, लेकिन यह बीजेपी को निगम में निर्विवाद रूप से सबसे बड़ी ताकत बनाता है। सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (LDF), जो अब तक यहां राज कर रहा था, वह सिमटकर 29 सीटों पर गया है। यह उनके लिए एक बड़ा झटका है क्योंकि राजधानी में उनकी पकड़ ढीली हो गई है। कांग्रेस के नेतृत्व वाला संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (UDF) तीसरे नंबर पर खिसक गया है और महज 19 सीटों पर जीत दर्ज कर पाया है। इसके अलावा, 2 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने बाजी मारी है, जो अब बोर्ड बनाने में 'किंगमेकर' की भूमिका निभा सकते हैं, हालांकि बीजेपी सबसे मजबूत स्थिति में है।

2. अमित शाह का 'कैपिटल प्लान': कैसे भेदा गया अभेद किला?

तिरुवनंतपुरम में मिली यह जीत रातों-रात नहीं मिली है। इसके पीछे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की एक लंबी और सूक्ष्म रणनीति (Micro-Strategy) काम कर रही थी। पार्टी ने समझ लिया था कि पूरे केरल को एक साथ जीतने से बेहतर है कि पहले शहरी केंद्रों और खासकर राजधानी पर फोकस किया जाए। तिरुवनंतपुरम में नायर समुदाय और उच्च-मध्यम वर्ग की अच्छी खासी आबादी है। बीजेपी ने अपनी रणनीति को इन्हीं वर्गों के इर्द-गिर्द बुना। अमित शाह ने स्थानीय नेताओं को स्पष्ट निर्देश दिए थे कि वे राष्ट्रीय मुद्दों के साथ-साथ स्थानीय भ्रष्टाचार और विकास के मुद्दों को उठाएं। पार्टी ने घर-घर जाकर यह समझाया कि केंद्र सरकार की स्मार्ट सिटी परियोजना और अन्य शहरी विकास योजनाओं का लाभ तभी मिलेगा जब स्थानीय निगम में भी बीजेपी की सत्ता होगी। 'डबल इंजन' के छोटे रूप का यह प्रयोग राजधानी में सफल रहा।

3. कांग्रेस (UDF) के लिए अस्तित्व का संकट

इन नतीजों का सबसे बुरा असर कांग्रेस गठबंधन (UDF) पर पड़ा है। 101 में से सिर्फ 19 सीटें जीतना यह दर्शाता है कि विपक्ष के तौर पर जनता का उनसे मोहभंग हो चुका है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि केरल में अब लड़ाई द्विपक्षीय (LDF vs UDF) नहीं रही, बल्कि त्रिकोणीय हो गई है, और कई जगहों पर तो यह सीधा LDF बनाम BJP बन गई है। कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक, खासकर नायर और कुछ हद तक ईसाई समुदाय, धीरे-धीरे बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो रहा है। अगर यही ट्रेंड जारी रहा, तो 2026 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए केरल को बचा पाना मुश्किल हो जाएगा, जो उनका आखिरी मजबूत गढ़ माना जाता है।

4. वामपंथियों (LDF) के लिए खतरे की घंटी

सत्तारूढ़ एलडीएफ के लिए राजधानी गंवाना एक बड़ी शर्मिंदगी का विषय है। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की नाक के नीचे बीजेपी का 29 के मुकाबले 50 सीटें जीतना यह बताता है कि शहरी मतदाता वामपंथी विचारधारा से दूर हो रहे हैं। तिरुवनंतपुरम के मतदाताओं ने स्पष्ट संदेश दिया है कि वे अब विचारधारा से ज्यादा 'विकास' और 'परिवर्तन' को प्राथमिकता दे रहे हैं। बीजेपी ने वामपंथियों के 'कुप्रबंधन' और 'गोल्ड स्मगलिंग' जैसे पुराने आरोपों को चुनाव में भुनाने में सफलता हासिल की है।

5. 2026 विधानसभा चुनाव का 'सेमीफाइनल'

स्थानीय निकाय के इन नतीजों को 2026 में होने वाले केरल विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है। तिरुवनंतपुरम की जीत बीजेपी कार्यकर्ताओं में एक नई ऊर्जा भरेगी। अब बीजेपी का लक्ष्य इस 'तिरुवनंतपुरम मॉडल' को कोच्चि, कोझिकोड और त्रिशूर जैसे अन्य बड़े शहरों में लागू करना होगा। यह जीत साबित करती है कि अगर सही उम्मीदवार और सही रणनीति हो, तो केरल में भी कमल खिल सकता है। बीजेपी अब यह नैरेटिव सेट करेगी कि वह केरल में सत्ता की एक गंभीर दावेदार है, कि सिर्फ वोट काटने वाली पार्टी।

6. राष्ट्रीय राजनीति पर असर

केरल की राजधानी में बीजेपी की जीत का संदेश सिर्फ दक्षिण तक सीमित नहीं रहेगा। यह उत्तर भारत और बाकी देश में भी एक बड़ा संदेश देगा कि प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की जोड़ी वहां भी चुनाव जीत सकती है, जहां की डेमोग्राफी और विचारधारा बीजेपी के बिल्कुल खिलाफ मानी जाती थी। यह जीत बीजेपी के उस दावे को मजबूत करती है कि वह एक 'पैन-इंडिया' (Pan-India) पार्टी है, जिसका प्रभाव कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी (और अब तिरुवनंतपुरम) तक फैल चुका है।

निष्कर्ष: दक्षिण का दरवाजा खुल गया

'राजनेतिक रिपोर्ट' का स्पष्ट मानना है कि 13 दिसंबर 2025 का दिन केरल की राजनीति में एक 'टर्निंग पॉइंट' है। 101 में से 50 सीटें जीतकर बीजेपी ने सिर्फ दक्षिण का दरवाजा खोला है, बल्कि उसे तोड़ दिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी अपने निर्दलीय साथियों की मदद से अपना मेयर बनाती है या नहीं, लेकिन एक बात तय है केरल की राजनीति अब पहले जैसी कभी नहीं रहेगी।

 

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डिस्क्लेमर: इस पोस्ट में इस्तेमाल की गई सभी तस्वीरें AI (Artificial Intelligence) द्वारा बनाई गई हैं और केवल प्रतीकात्मक (Representational) उद्देश्य के लिए हैं।