Ramlila Maidan Congress Rally Rahul Gandhi Vote Theft Allegations EVM Controversy
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नई दिल्ली ऐतिहासिक रामलीला मैदान एक बार फिर भारतीय राजनीति के सबसे बड़े वैचारिक युद्ध का गवाह बना। रविवार को कांग्रेस की 'न्याय संकल्प रैली' में जो हुआ, वह केवल एक राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन नहीं था, बल्कि यह देश की संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता पर एक खुली बहस की शुरुआत थी। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने मंच से सीधे तौर पर चुनाव आयोग और प्रशासनिक मशीनरी पर "वोट चोरी" और "संस्थाओं के अपहरण" का आरोप लगाया। वहीं दूसरी ओर, सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए इसे "घुसपैठियों को बचाने की छटपटाहट" करार दिया है। राजनेतिक रिपोर्ट (Rajnetik Report) के इस विशेष विश्लेषण में हम दोनों पक्षों के तर्कों की गहराई से पड़ताल करेंगे और जानेंगे कि आखिर इस सियासी शोर में सच कहाँ खड़ा है।

1. "सिस्टम ही बन गया है विपक्ष": कांग्रेस का सबसे बड़ा हमला इस रैली का सबसे प्रमुख बिंदु राहुल गांधी का वह आक्रामक भाषण था, जिसमें उन्होंने यह स्थापित करने की कोशिश की कि अब उनकी लड़ाई किसी राजनीतिक दल (भाजपा) से नहीं, बल्कि उस पूरे 'सिस्टम' से है जो निष्पक्ष नहीं रहा। कांग्रेस का तर्क है कि चुनाव आयोग, ईडी (ED), सीबीआई (CBI) और यहां तक कि मीडिया का एक बड़ा हिस्सा अब 'रेफरी' की भूमिका नहीं निभा रहा, बल्कि सत्ता पक्ष की टीम के खिलाड़ी की तरह बर्ताव कर रहा है। राहुल गांधी ने कहा कि "संविधान हमारी आत्मा है, और आज उसी आत्मा को कुचला जा रहा है।" उन्होंने आरोप लगाया कि संस्थाओं के प्रमुखों की नियुक्ति प्रक्रिया को बदलकर सरकार ने उन्हें अपनी मुट्ठी में कर लिया है, जिससे निष्पक्ष न्याय की उम्मीद खत्म होती जा रही है।

2. 'स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन' (SIR): सफाई अभियान या वोटर्स की छंटनी? इस विवाद की मुख्य जड़ 'स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन' (SIR) प्रक्रिया है। यह मतदाता सूची को अपडेट करने की एक तकनीकी प्रक्रिया है।

1.    विपक्ष का डर: कांग्रेस का आरोप है कि इस रिवीजन की आड़ में एक खास पैटर्न के तहत वोट काटे जा रहे हैं। उनका दावा है कि दलितआदिवासी और अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में तकनीकी खामियाँ बताकर हज़ारों नाम लिस्ट से हटा दिए गए हैं। प्रियंका गांधी ने इसे "वोट के अधिकार पर डाकाबताया।

2. तकनीकी सच: वहींचुनाव आयोग के नियमों के अनुसारयह एक रूटीन प्रक्रिया है। इसका मकसद उन लोगों के नाम हटाना होता है जिनकी मृत्यु हो चुकी हैजो शहर छोड़ चुके हैंया जिनके नाम दो जगहों पर दर्ज हैं। एक साफ-सुथरी वोटर लिस्ट ही निष्पक्ष चुनाव की नींव होती है।

3. भाजपा का पलटवार: "यह वोट चोरी नहीं, घुसपैठियों की सफाई है" कांग्रेस के आरोपों पर भाजपा ने आक्रामक रुख अपनाया है। भाजपा प्रवक्ताओं का कहना है कि कांग्रेस जिस 'वोटर लिस्ट' के लिए रो रही है, उसमें लाखों की संख्या में अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों के नाम शामिल हैं। सत्ता पक्ष का तर्क है कि कांग्रेस ने सालों तक "तुष्टीकरण की राजनीति" के तहत इन घुसपैठियों के अवैध राशन कार्ड और वोटर कार्ड बनवाए। अब जब चुनाव आयोग और सरकार मिलकर इन बोगस और अवैध वोटरों की पहचान कर उन्हें बाहर कर रहे हैं, तो कांग्रेस का वोट बैंक खिसकता हुआ नजर रहा है। भाजपा ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बनाते हुए कहा कि "देश के नागरिकों का हक घुसपैठियों को नहीं दिया जा सकता।"

4. महाराष्ट्र चुनाव के आंकड़ों का रहस्य और ईवीएम पर अविश्वास रैली में महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों का बार-बार जिक्र हुआ। कांग्रेस ने आंकड़ों का हवाला देते हुए सवाल उठाया कि जिस राज्य में सरकार विरोधी लहर (Anti-Incumbency) साफ दिख रही थी, वहां नतीजे एकतरफा कैसे हो गए? उन्होंने दावा किया कि कुछ विधानसभा सीटों पर वोटिंग प्रतिशत अंतिम घंटों में अचानक बढ़ गया, जो संदेह पैदा करता है। हालांकि, हमें यह भी याद रखना होगा कि ईवीएम (EVM) पर सवाल उठाना भारतीय राजनीति में नया नहीं है। रोचक तथ्य यह है कि 2009 में जब भाजपा विपक्ष में थी, तब लालकृष्ण आडवाणी और जीवीएल नरसिम्हा राव जैसे नेताओं ने भी ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए थे और इस पर किताबें तक लिखी थीं। यह दर्शाता है कि जो भी पार्टी चुनाव हारती है, उसे मशीनरी में खोट नजर आने लगता है।

5. मीडिया और 'नैरेटिव' की लड़ाई राहुल गांधी ने रैली में मीडिया पर भी तीखे प्रहार किए। उन्होंने कहा कि मुख्यधारा का मीडिया (Mainstream Media) असल मुद्दों जैसे बेरोजगारी, महंगाई और संवैधानिक संकट को दिखाने के बजाय केवल सरकार का पीआर (PR) कर रहा है। कांग्रेस का आरोप है कि जब 'चौथा स्तंभ' ही कमजोर हो जाए, तो तानाशाही की आहट तेज हो जाती है। वहीं, मीडिया के एक वर्ग और सत्ता पक्ष का कहना है कि विपक्ष के पास कोई ठोस मुद्दा नहीं बचा है, इसलिए वे अपनी नाकामी का ठीकरा मीडिया और संस्थाओं पर फोड़ रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी यह युद्ध छिड़ा हुआ है, जहाँ एक तरफ #SaveConstitution ट्रेंड कर रहा है, तो दूसरी तरफ #CryBabyCongress जैसे हैशटैग चल रहे हैं।

6. संवैधानिक संस्थाओं की साख का सवाल भारत का चुनाव आयोग दुनिया के सबसे सम्मानित संस्थानों में से एक रहा है। टी.एन. शेषन के दौर से लेकर अब तक आयोग ने कई कठिन चुनाव संपन्न कराए हैं। लेकिन मौजूदा दौर में जिस तरह से आयोग के फैसलों, चुनाव की तारीखों के एलान और आचार संहिता (Model Code of Conduct) के पालन पर सवाल उठ रहे हैं, वह चिंताजनक है। लोकतंत्र में संस्था का 'निष्पक्ष होना' ही काफी नहीं है, उसका 'निष्पक्ष दिखना' भी उतना ही जरूरी है। अगर देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी और जनता के एक बड़े हिस्से का भरोसा चुनाव आयोग से उठ जाता है, तो यह किसी भी पार्टी की जीत-हार से बड़ा संकट है।

7. आगे की राह: जन-आंदोलन या कानूनी लड़ाई? रामलीला मैदान से कांग्रेस ने साफ संकेत दिया है कि वे अब केवल कोर्ट-कचहरी के भरोसे नहीं रहेंगे। उन्होंने घोषणा की है कि वे 'वोटर लिस्ट' की जांच के लिए घर-घर जाएंगे और जनता को जागरूक करेंगे। यह रणनीति बताती है कि 2029 के लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस "सड़क पर संघर्ष" का रास्ता अपना रही है। वहीं, भाजपा भी अपने संगठन के जरिए यह संदेश घर-घर पहुँचाने की तैयारी में है कि वे देश को अवैध नागरिकों से मुक्त करा रहे हैं।

निष्कर्ष: आज देश एक दोराहे पर खड़ा है। एक तरफ आरोप है कि संविधान को अंदर से खोखला किया जा रहा है, और दूसरी तरफ दावा है कि संविधान का पालन करते हुए देश की सुरक्षा और सिस्टम को सुधारा जा रहा है। 14 दिसंबर की यह रैली महज एक घटना नहीं, बल्कि आने वाले समय की उस कड़वाहट की झलक है जो हमें भारतीय राजनीति में देखने को मिलेगी। जनता के लिए यह समय सतर्क रहने का है उन्हें तो विपक्ष के डर में बहना चाहिए और ही सत्ता पक्ष के दावों को आंख मूंदकर मानना चाहिए। लोकतंत्र तभी जीवित रहता है जब नागरिक सवाल पूछना बंद नहीं करते चाहे वह सरकार से हो या विपक्ष से।

 

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डिस्क्लेमर: इस पोस्ट में इस्तेमाल की गई सभी तस्वीरें AI (Artificial Intelligence) द्वारा बनाई गई हैं और केवल प्रतीकात्मक (Representational) उद्देश्य के लिए हैं।