Omar Abdullah statement on Vote Theft Congress INDIA Alliance Rift Rahul Gandhi
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भारतीय राजनीति में गठबंधन बनना और टूटना कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब एक साझा मंच से उठी आवाज को उसी गठबंधन का एक प्रमुख साथी खारिज कर दे, तो सवाल उठना लाजिमी है। दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में कांग्रेस ने 'लोकतंत्र बचाओ, ईवीएम हटाओ' के नारे के साथ एक विशाल रैली की थी। इस रैली का मुख्य उद्देश्य भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और चुनाव आयोग पर 'वोट चोरी' का गंभीर आरोप लगाना था। लेकिन इस रैली के 24 घंटे बीतने से पहले ही विपक्षी गठबंधन 'INDIA' (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस) के भीतर एक बड़ी दरार सामने गई है।

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष, उमर अब्दुल्ला ने एक ऐसा बयान दिया है जिसने कांग्रेस की मुहिम की हवा निकाल दी है। उमर अब्दुल्ला ने साफ तौर पर कहा है कि 'वोट चोरी' का मुद्दा सिर्फ कांग्रेस का अपना एजेंडा है, इससे INDIA गठबंधन का कोई लेना-देना नहीं है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब राहुल गांधी देश भर में घूम-घूम कर यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि लोकतंत्र खतरे में है और चुनाव प्रक्रिया में धांधली हो रही है। आइए, इस पूरे घटनाक्रम और इसके सियासी मायनों को विस्तार से समझते हैं।

1. रामलीला मैदान की हुंकार और कांग्रेस का दावा रविवार को दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे जैसे शीर्ष नेताओं ने मंच से केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर ज़बरदस्त प्रहार किए। राहुल गांधी ने कहा कि चुनाव अब 'मैच फिक्सिंग' की तरह हो गए हैं। उन्होंने 'स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन' (SIR) और ईवीएम (EVM) की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। कांग्रेस का दावा था कि यह लड़ाई सिर्फ उनकी पार्टी की नहीं, बल्कि पूरे विपक्ष और देश के लोकतंत्र की है। उन्होंने इसे एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप देने की कोशिश की थी।

2. उमर अब्दुल्ला का चौंकाने वाला बयान रैली के ठीक अगले दिन, यानी सोमवार को उमर अब्दुल्ला ने जो बयान दिया, उसने सबको चौंका दिया। एक निजी समाचार चैनल से बात करते हुए उन्होंने कहा, "वोट चोरी का मुद्दा कांग्रेस का मुद्दा है। INDIA गठबंधन का इससे कोई लेना-देना नहीं है।" उन्होंने आगे कहा कि हर राजनीतिक दल का अपना एजेंडा होता है और वे किन मुद्दों को उठाना चाहते हैं, यह उनका फैसला है। लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि यह पूरे गठबंधन का साझा रुख नहीं है। यह बयान इसलिए भी अहम है क्योंकि नेशनल कॉन्फ्रेंस INDIA गठबंधन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

3. बयान के सियासी मायने: क्या विपक्ष में सहमति नहीं है? उमर अब्दुल्ला के इस बयान के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि ईवीएम और चुनाव प्रक्रिया पर धांधली के आरोपों को लेकर विपक्ष के भीतर ही एक राय नहीं है। यह दिखाता है कि कांग्रेस जिस मुद्दे को राष्ट्रीय संकट बता रही है, उसे उसके अपने साथी दल ही उतनी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। यह गठबंधन के भीतर वैचारिक मतभेद और तालमेल की कमी को भी दर्शाता है। जब तक विपक्ष एक सुर में नहीं बोलेगा, तब तक भाजपा जैसी मजबूत पार्टी के सामने उसकी चुनौती कमजोर ही रहेगी।

4. भाजपा को मिला बैठे-बिठाए मुद्दा उमर अब्दुल्ला के इस बयान ने भाजपा को बैठे-बिठाए एक बड़ा सियासी हथियार दे दिया है। भाजपा पहले ही कांग्रेस के आरोपों को 'हार की हताशा' और 'घुसपैठियों को बचाने की साजिश' बता रही थी। अब वे उमर अब्दुल्ला के बयान का हवाला देकर कह सकते हैं कि देखिए, कांग्रेस के झूठ पर तो उनके अपने साथी भी भरोसा नहीं करते। भाजपा के प्रवक्ता अब जोर-शोर से यह प्रचारित करेंगे कि 'वोट चोरी' की कहानी सिर्फ राहुल गांधी की मनगढ़ंत कल्पना है और इसका हकीकत से कोई वास्ता नहीं है।

5. कांग्रेस के लिए असहज स्थिति यह पूरा घटनाक्रम कांग्रेस के लिए बेहद असहज और शर्मिंदगी भरा है। एक तरफ राहुल गांधी देश को यह विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे पूरे विपक्ष का नेतृत्व कर रहे हैं, और दूसरी तरफ उनके ही गठबंधन का एक वरिष्ठ नेता उनके सबसे बड़े चुनावी मुद्दे को खारिज कर रहा है। इससे जनता के बीच भी गलत संदेश जाता है। यह कांग्रेस के नेतृत्व पर भी सवाल खड़े करता है कि क्या वे अपने सहयोगी दलों को विश्वास में लेने में नाकाम रहे हैं।

6. क्या ईवीएम का मुद्दा अब कमजोर पड़ेगा? उमर अब्दुल्ला के बयान के बाद ईवीएम और 'वोट चोरी' के मुद्दे की धार निश्चित रूप से कुंद होगी। जब विपक्षी दल खुद ही एकमत नहीं हैं, तो चुनाव आयोग या सुप्रीम कोर्ट पर दबाव बनाना मुश्किल होगा। जनता भी यह सोचने पर मजबूर होगी कि अगर वाकई कोई बड़ी धांधली हो रही है, तो बाकी विपक्षी दल चुप क्यों हैं? यह संभव है कि भविष्य में यह मुद्दा सिर्फ कांग्रेस के चुनावी भाषणों तक ही सीमित रह जाए और इसे व्यापक जनसमर्थन मिल पाए।

7. आगे की राह: INDIA गठबंधन का भविष्य यह घटना INDIA गठबंधन के भविष्य पर भी सवालिया निशान लगाती है। अगर चुनाव से पहले ही अहम मुद्दों पर इतनी बड़ी असहमति है, तो सीट बंटवारे और साझा घोषणापत्र जैसे पेचीदा मुद्दों पर आम सहमति कैसे बनेगी? यह स्पष्ट है कि भाजपा को हराने के लिए सिर्फ एक मंच पर इकट्ठा होना ही काफी नहीं है, बल्कि एक साझा दृष्टि और एक सुर में बोलना भी जरूरी है। उमर अब्दुल्ला के बयान ने विपक्ष की एकता के दावों की पोल खोल दी है।

निष्कर्ष उमर अब्दुल्ला का बयान सिर्फ एक प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि यह विपक्षी एकता की असलियत का एक आईना है। इसने कांग्रेस की 'वोट चोरी' की मुहिम को बड़ा झटका दिया है और भाजपा को राहत की सांस लेने का मौका दिया है। आने वाले दिनों में देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इस नुकसान की भरपाई कैसे करती है और क्या वह अपने सहयोगी दलों को इस मुद्दे पर अपने साथ ला पाती है या नहीं। फिलहाल, रामलीला मैदान से उठी आवाज अब बंटी हुई और कमजोर नजर रही है।

 

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डिस्क्लेमर: इस पोस्ट में इस्तेमाल की गई सभी तस्वीरें AI (Artificial Intelligence) द्वारा बनाई गई हैं और केवल प्रतीकात्मक (Representational) उद्देश्य के लिए हैं।