Indian Parliament winter session disruption over alleged renaming of Mahatma Gandhi NREGA scheme by opposition parties.
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नई दिल्ली भारतीय संसद के शीतकालीन सत्र में मंगलवार का दिन ऐतिहासिक और अत्यधिक हंगामेदार रहा। जिस खबर को लेकर पिछले कुछ दिनों से केवल कयास लगाए जा रहे थे, वह सच साबित हुई। केंद्र की मोदी सरकार ने देश की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना 'मनरेगा' (MGNREGA) को पूरी तरह से बदलने के लिए लोकसभा में एक नया बिल पेश कर दिया है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भारी शोर-शराबे के बीच 'विकसित भारत- गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) बिल, 2025' (VB-G RAM G) को पटल पर रखा। इस बिल के आते ही विपक्ष ने आसमान सिर पर उठा लिया। विपक्ष का सबसे बड़ा आरोप यह है कि सरकार ने केवल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का नाम इस योजना से हटा दिया है, बल्कि योजना के मूल ढांचे को बदलकर राज्यों पर भारी आर्थिक बोझ डाल दिया है।

आइए, इस नए 'VB-G RAM G' बिल के हर पहलू, इसके फायदे-नुकसान और इस पर मचे सियासी घमासान को विस्तार से समझते हैं।

1. क्या है नया 'VB-G RAM G' बिल? अब तक देश में 2005 का बना 'महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम' (MGNREGA) लागू था। सरकार ने अब इसे निरस्त (Repeal) करके उसकी जगह नया कानून लाने का प्रस्ताव दिया है। इस नए बिल का पूरा नाम 'Viksit Bharat Guarantee for Rozgar and Ajeevika Mission (Gramin)' है। सरकार ने इसका संक्षिप्त नाम 'VB-G RAM G' रखा है। सरकार का तर्क है कि 20 साल पुराने कानून को 'विकसित भारत 2047' के विजन के साथ जोड़ने के लिए यह बदलाव जरूरी था। लेकिन इस बदलाव में सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की है कि योजना के नाम से 'महात्मा गांधी' शब्द गायब हो गया है, जिसे लेकर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल सरकार को 'गांधी विरोधी' बता रहे हैं।

2. रोजगार गारंटी: 100 से बढ़कर 125 दिन इस नए बिल में सबसे बड़ा 'पॉजिटिव' बदलाव रोजगार के दिनों को लेकर किया गया है। पुराने मनरेगा कानून में एक ग्रामीण परिवार को साल में कम से कम 100 दिन के रोजगार की गारंटी थी। नए 'VB-G RAM G' बिल में इसे बढ़ाकर 125 दिन कर दिया गया है। सरकार का दावा है कि इससे ग्रामीण गरीबों को ज्यादा आय होगी और उनकी आजीविका सुरक्षित होगी। ग्रामीण विकास मंत्री ने सदन में कहा कि मोदी सरकार गरीबों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है और यह बढ़ोतरी उसी दिशा में उठाया गया कदम है। हालांकि, विपक्ष इसे केवल एक 'लॉलीपॉप' बता रहा है, क्योंकि बिल के अन्य प्रावधान राज्यों के अधिकारों को सीमित करने वाले हैं।

3. फंडिंग का पेंच: राज्यों पर बढ़ा आर्थिक बोझ विपक्ष के गुस्से और राज्यों की चिंता का सबसे बड़ा कारण बिल का 'फंडिंग पैटर्न' है। पुराने मनरेगा कानून के तहत, मजदूरी (Wages) का 100% पैसा केंद्र सरकार देती थी। लेकिन नए बिल में इसे बदलकर 'केंद्र प्रायोजित योजना' (Centrally Sponsored Scheme) के ढांचे में लाया जा रहा है। इसका मतलब है कि अब मजदूरी का खर्च केंद्र और राज्य सरकारों के बीच 60:40 के अनुपात में बंटेगा। यानी, अब राज्य सरकारों को अपनी जेब से 40% पैसा देना होगा। विपक्ष का कहना है कि जिन राज्यों के पास पहले से ही फंड की कमी है, वे इतना पैसा कहां से लाएंगे? इसका सीधा असर यह होगा कि राज्य सरकारें काम खोलने से बचेंगी और अंततः गरीबों को काम मिलना बंद हो जाएगा।

4. 'पीक सीजन' में काम पर रोक: एक और विवादास्पद नियम इस बिल में एक और ऐसा प्रावधान है जिस पर तीखी बहस छिड़ गई है। नए कानून के तहत, खेती के 'पीक सीजन' (बुवाई और कटाई के समय) के दौरान साल में 60 दिनों तक मनरेगा के तहत कोई काम नहीं दिया जाएगा। सरकार का तर्क है कि बुवाई और कटाई के समय किसानों को मजदूरों की कमी का सामना करना पड़ता है क्योंकि मजदूर मनरेगा में काम करने चले जाते हैं। इसलिए, खेती को बचाने के लिए यह 'काम बंदी' (Pause) जरूरी है। दूसरी तरफ, मजदूर संगठनों और विपक्ष का कहना है कि यह गरीब मजदूरों के 'काम के अधिकार' का हनन है। अगर किसी मजदूर को खेती के सीजन में भी खेत पर काम नहीं मिला, तो वह क्या करेगा?

5. महात्मा गांधी का नाम हटाने पर सियासी संग्राम जैसे ही बिल पेश हुआ, कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी और शशि थरूर समेत तमाम विपक्षी सांसदों ने 'महात्मा गांधी' का नाम हटाने पर तीखी प्रतिक्रिया दी। प्रियंका गांधी ने संसद परिसर में कहा कि यह सरकार बापू की विरासत से नफरत करती है। उन्होंने पूछा कि आखिर "बापू से क्या दिक्कत है?" विपक्ष ने इसे देश के इतिहास को मिटाने की साजिश करार दिया। वहीं, सरकार की तरफ से शिवराज सिंह चौहान ने जवाब देते हुए कहा कि "महात्मा गांधी हमारे दिल में बसते हैं और हम राम राज्य की परिकल्पना को साकार कर रहे हैं, इसलिए बिल के नाम में 'RAM' (Rozgar Ajeevika Mission) शब्द शामिल है।"

6. सप्लाई-ड्रिवन बनाम डिमांड-ड्रिवन विशेषज्ञों का कहना है कि मनरेगा की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वह 'डिमांड-ड्रिवन' (मांग आधारित) योजना थी। यानी, जब मजदूर काम मांगेगा, सरकार को काम देना ही पड़ेगा। लेकिन नए बिल के प्रावधानों को देखकर ऐसा लगता है कि इसे 'सप्लाई-ड्रिवन' (आपूर्ति आधारित) बनाया जा रहा है। अब केंद्र सरकार पहले से तय करेगी कि किस राज्य को कितना बजट मिलेगा (Normative Allocation) अगर बजट खत्म हो गया, तो शायद मजदूरों को काम मिले। विपक्ष का आरोप है कि इससे योजना का मूल चरित्र ही खत्म हो जाएगा और यह कानूनी अधिकार के बजाय सिर्फ एक सरकारी स्कीम बनकर रह जाएगी।

7. विपक्ष की रणनीति और आगे की राह विपक्षी गठबंधन INDIA ने इस बिल को संसद की स्थायी समिति (Standing Committee) या संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजने की मांग की है। उनका कहना है कि इतने बड़े बदलाव जल्दबाजी में पास नहीं किए जाने चाहिए। संसद के अंदर विपक्ष ने 'बिल वापस लो' के नारे लगाए और कार्यवाही बाधित की। हालांकि, लोकसभा में सरकार के पास बहुमत है, इसलिए वहां से बिल पास होना मुश्किल नहीं है, लेकिन राज्यसभा में विपक्ष सरकार को कड़ी टक्कर दे सकता है। आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर सड़क पर भी आंदोलन देखने को मिल सकते हैं।

निष्कर्ष 'VB-G RAM G' बिल निस्संदेह भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा मोड़ है। 125 दिन का रोजगार एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन राज्यों पर 40% खर्च का बोझ और महात्मा गांधी का नाम हटाना ऐसे मुद्दे हैं जो लंबे समय तक विवाद का विषय बने रहेंगे। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार विपक्ष के भारी विरोध के बावजूद इस बिल को इसी सत्र में पास करा पाती है, या इसे ठंडे बस्ते में डालना पड़ेगा। फिलहाल, संसद का यह सत्र 'मनरेगा' बनाम 'G RAM G' की लड़ाई का अखाड़ा बन गया है।

 

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डिस्क्लेमर: इस पोस्ट में इस्तेमाल की गई सभी तस्वीरें AI (Artificial Intelligence) द्वारा बनाई गई हैं और केवल प्रतीकात्मक (Representational) उद्देश्य के लिए हैं।