Sairang-New Delhi Rajdhani Express derailed in Assam after hitting elephants, 7 elephants dead.
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आज की सुबह असम और पूरे देश के वन्यजीव प्रेमियों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं रही। असम के होजई जिले में रेलवे ट्रैक पर एक दिल दहला देने वाली घटना घटी है, जिसने इंसान की तरक्की और बेजुबान जानवरों के अस्तित्व के बीच चल रहे खूनी संघर्ष को एक बार फिर उजागर कर दिया है। मिजोरम के सैरांग से देश की राजधानी दिल्ली जा रही सैरांग-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस (ट्रेन नंबर 20507) घने कोहरे के बीच हाथियों के एक बड़े झुंड से टकरा गई। टक्कर इतनी भीषण थी कि मौके पर ही 7 हाथियों की दर्दनाक मौत हो गई, जिनमें नन्हे बछड़े भी शामिल हैं। वहीं, इस टक्कर के कारण ट्रेन का इंजन और 5 कोच पटरी से उतर (Derail) गए, जिससे सैकड़ों यात्रियों की जान पर बन आई।

आइए, इस भीषण दुर्घटना की पूरी टाइमलाइन और इसके पीछे की लापरवाही पर विस्तार से नजर डालते हैं।

1. घटना का विवरण: वो खौफनाक रात यह हादसा असम के होजई और लंका स्टेशनों के बीच हुआ। ट्रेन नंबर 20507, सैरांग-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस, अपनी निर्धारित गति से दिल्ली की ओर बढ़ रही थी। रात का समय था और इलाके में हल्का कोहरा छाया हुआ था। इसी दौरान, रेलवे ट्रैक पर हाथियों का एक परिवार गया। प्रत्यक्षदर्शियों और रेलवे सूत्रों के मुताबिक, ट्रेन की रफ्तार इतनी तेज थी कि लोको पायलट को ब्रेक लगाने का मौका ही नहीं मिला। भारी-भरकम इंजन सीधे हाथियों के झुंड से टकराया। टक्कर की आवाज इतनी तेज थी कि आसपास के गांवों तक सुनाई दी। इस टक्कर के झटके से ट्रेन का इंजन और उसके पीछे की 5 बोगियां पटरी से उतर गईं, जिससे यात्रियों में चीख-पुकार मच गई।

2. 7 बेजुबानों की मौत: एक पूरा परिवार खत्म इस हादसे का सबसे विचलित करने वाला पहलू हाथियों की मौत का आंकड़ा है। वन विभाग ने पुष्टि की है कि कुल 7 हाथियों की मौत हुई है। मरने वालों में 3 वयस्क हाथी और 4 छोटे बच्चे (Calves) शामिल हैं। यह एक बहुत बड़ी क्षति है क्योंकि हाथियों का एक पूरा कुनबा ही खत्म हो गया। एक घायल बछड़ा, जो शायद टक्कर से दूर गिर गया था, दर्द से कराहता हुआ मिला, जिसका इलाज वन विभाग की टीम कर रही है। ट्रैक पर बिखरे हुए विशालकाय शव और उनके पास बिलखता घायल बछड़ा देखकर राहत कार्य में लगे लोगों की भी आंखें नम हो गईं। यह असम में हाल के वर्षों में हुई सबसे बड़ी 'एलिफेंट ट्रेजेडी' (Elephant Tragedy) में से एक है।

3. प्रीमियम ट्रेन की सुरक्षा पर सवाल हादसे का शिकार हुई ट्रेन कोई साधारण पैसेंजर गाड़ी नहीं, बल्कि भारतीय रेलवे की शान मानी जाने वाली 'राजधानी एक्सप्रेस' थी। अगर एक प्रीमियम ट्रेन, जो आधुनिक तकनीक से लैस मानी जाती है, जानवरों से टकराकर डीरेल (Derail) हो सकती है, तो यह यात्रियों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े करता है। गनीमत रही कि ट्रेन किसी पुल या ऊंचाई वाले इलाके पर नहीं थी, अन्यथा कोच पलटने से जनहानि हो सकती थी। यात्रियों को मामूली चोटें आईं और वे गहरे सदमे में हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या राजधानी जैसी ट्रेनों के इंजन्स में ऐसे इम्पैक्ट को झेलने की क्षमता नहीं है? या फिर ट्रैक की स्थिति कमजोर थी?

4. एलिफेंट कॉरिडोर और स्पीड लिमिट की अनदेखी जिस जगह यह हादसा हुआ, वह हाथियों की आवाजाही के लिए जाना जाता है। असम में कई अधिसूचित (Notified) एलिफेंट कॉरिडोर हैं जहाँ ट्रेनों की रफ्तार को धीमा रखने (Speed Restriction) का नियम है। जांच का मुख्य विषय यह होगा कि क्या 20507 राजधानी एक्सप्रेस उस वक्त तय स्पीड लिमिट का पालन कर रही थी? अक्सर देखा गया है कि ट्रेनें लेट होने पर समय कवर करने के लिए इन संवेदनशील इलाकों में भी रफ्तार कम नहीं करतीं। अगर लोको पायलट को वन विभाग से कोई चेतावनी नहीं मिली थी, तो यह सिस्टम की विफलता है, और अगर चेतावनी के बावजूद स्पीड कम नहीं की गई, तो यह आपराधिक लापरवाही है।

5. 'गजराज सुरक्षा' और AI सिस्टम कहां था? रेलवे मंत्री ने कुछ समय पहले दावा किया था कि नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर रेलवे (NFR) में हाथियों को बचाने के लिए 'गजराज सुरक्षा' नामक एआई-आधारित 'इंट्रूडर डिटेक्शन सिस्टम' (IDS) लगाया जा रहा है। यह सिस्टम ऑप्टिकल फाइबर के जरिए हाथियों के कदमों की कंपन को पहचानकर कंट्रोल रूम को अलर्ट भेजता है। आज जनता यह पूछना चाहती है कि क्या होजई के इस रूट पर यह सिस्टम एक्टिव था? अगर 7 हाथियों का इतना बड़ा झुंड ट्रैक पर था, तो सेंसर ने अलार्म क्यों नहीं बजाया? करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी अगर परिणाम शून्य है, तो इस तकनीक की फिर से समीक्षा होनी चाहिए।

6. वन विभाग और रेलवे का 'ब्लेम गेम' हर बड़े हादसे के बाद की तरह, इस बार भी जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालने का खेल शुरू हो सकता है। वन विभाग का कहना है कि वे नियमित गश्त करते हैं, लेकिन रेलवे ट्रैक की निगरानी 24 घंटे करना मुश्किल है। वहीं, रेलवे अधिकारी अक्सर कहते हैं कि वन विभाग उन्हें हाथियों के मूवमेंट की रियल-टाइम जानकारी नहीं देता। इस समन्वय की कमी (Lack of Coordination) की कीमत बेजुबान जानवरों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही है। क्या दोनों विभागों के बीच हॉटलाइन या वाकी-टाकी कम्युनिकेशन मौजूद नहीं था?

7. असम में हाथियों के लिए 'डेथ ट्रैप' बने रेलवे ट्रैक आंकड़े डराने वाले हैं। असम में रेलवे लाइनें कई राष्ट्रीय उद्यानों और जंगलों के बीच से होकर गुजरती हैं। गुवाहाटी से लेकर लुमडिंग और डिब्रूगढ़ तक का रूट हाथियों के लिए 'मौत का जाल' बन चुका है। सर्दियों में हाथी भोजन की तलाश में मैदानी इलाकों और ट्रैक की तरफ आते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 10 सालों में देश में ट्रेन की चपेट में आने से 200 से ज्यादा हाथियों की मौत हुई है, जिनमें से एक बड़ा हिस्सा असम और पश्चिम बंगाल का है। सैरांग-नई दिल्ली राजधानी का यह हादसा उस सूची में एक और काला अध्याय जोड़ गया है।

8. यात्रियों का अनुभव और रेस्क्यू ऑपरेशन दुर्घटनाग्रस्त ट्रेन के यात्रियों ने बताया कि रात के सन्नाटे में अचानक एक जोरदार धमाका हुआ और बोगियां पटरी से उतर गईं। एसी कोचों में सो रहे यात्री अपनी बर्थ से नीचे गिर गए। अंधेरा होने के कारण शुरुआत में किसी को समझ नहीं आया कि क्या हुआ है। बाद में जब लोग बाहर निकले, तो मंजर भयानक था। रेलवे ने तुरंत रिलीफ ट्रेन भेजी और यात्रियों को दूसरे रेक के जरिए गंतव्य के लिए रवाना किया। ट्रैक को साफ करने में लंबा समय लग रहा है क्योंकि भारी-भरकम हाथियों के शवों को हटाना और पटरी की मरम्मत करना एक चुनौती है।

9. क्या एलिवेटेड कॉरिडोर ही एकमात्र समाधान है? पर्यावरणविदों का मानना है कि जमीन पर बाड़ (Fencing) लगाने या सायरन बजाने से यह समस्या पूरी तरह खत्म नहीं होगी। इसका एकमात्र स्थायी समाधान संवेदनशील इलाकों में रेलवे ट्रैक को खंभों पर ऊपर उठाना (Elevated Corridor) है, ताकि जानवर नीचे से आराम से गुजर सकें। राजाजी नेशनल पार्क और कुछ अन्य जगहों पर ऐसे प्रयोग सफल रहे हैं। असम के इस महत्वपूर्ण रूट पर भी अब अंडरपास और ओवरपास बनाने में और देरी नहीं की जानी चाहिए। विकास जरूरी है, लेकिन वह विनाश की कीमत पर नहीं होना चाहिए।

निष्कर्ष: जवाबदेही तय होनी चाहिए 7 हाथियों की मौत कोई छोटी घटना नहीं है। यह हमारे ईको-सिस्टम की हत्या है। केंद्र सरकार, रेलवे मंत्रालय और असम सरकार को इस घटना की उच्च स्तरीय जांच करानी चाहिए। सिर्फ जांच कमेटियां बनाने से काम नहीं चलेगा, बल्कि ठोस कदम उठाने होंगे। अगर लोको पायलट दोषी है तो कार्रवाई हो, और अगर सिस्टम में खामी है तो उसे सुधारा जाए। आज हम उन 7 बेजुबानों को श्रद्धांजलि देते हैं जो हमारी लापरवाही का शिकार बने। उम्मीद है कि यह भीषण हादसा आखिरी होगा और भविष्य में 'गजराज' को पटरियों पर अपनी जान नहीं गंवानी पड़ेगी।

 

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डिस्क्लेमर: इस पोस्ट में इस्तेमाल की गई सभी तस्वीरें AI (Artificial Intelligence) द्वारा बनाई गई हैं और केवल प्रतीकात्मक (Representational) उद्देश्य के लिए हैं।