AI based satellite toll collection system on Indian highways to replace toll plazas by 2026 end announced by Nitin Gadkari.
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भारतीय राष्ट्रीय राजमार्गों (National Highways) पर सफर करने वालों के लिए एक बहुत बड़ी खुशखबरी सामने आई है। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने एक क्रांतिकारी घोषणा की है जो देश में ड्राइविंग के अनुभव को पूरी तरह बदल देगी। गडकरी ने साफ कर दिया है कि 2026 के अंत तक भारत की सड़कों से मौजूदा टोल प्लाजा (Physical Toll Plazas) को हटाने की तैयारी चल रही है। इनकी जगह दुनिया का सबसे एडवांस 'AI और सैटेलाइट आधारित टोल कलेक्शन सिस्टम' (GNSS) ले लेगा। इसका सीधा मतलब यह है कि आपको टोल देने के लिए अपनी गाड़ी को एक सेकंड के लिए भी रोकने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आपकी गाड़ी फर्राटे से दौड़ती रहेगी और टोल अपने आप आपके बैंक खाते से कट जाएगा।

चलिए इस नए टोल सिस्टम को थोड़ा गहराई से समझते है कि यह नई तकनीक क्या है, यह कैसे काम करेगी और 2026 तक आम आदमी की जिंदगी में इससे क्या बदलाव आएंगे।

1. क्या है नितिन गडकरी का 'विजन 2026'? एक हालिया कार्यक्रम में बोलते हुए नितिन गडकरी ने कहा कि सरकार का लक्ष्य भारतीय राजमार्गों को विश्वस्तरीय बनाना है। उन्होंने बताया कि फास्टैग (FASTag) आने के बाद टोल पर लगने वाला समय काफी कम हुआ है, लेकिन अभी भी पीक आवर्स में जाम लगता है। इस समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए सरकार 'ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम' (GNSS) तकनीक ला रही है। गडकरी ने डेडलाइन देते हुए कहा कि 2026 के अंत तक इस सिस्टम को पूरे देश में लागू करने का लक्ष्य है। इसके बाद भारत में कहीं भी बैरियर वाले टोल नाके नहीं दिखेंगे।

2. कैसे काम करेगा यह 'अदृश्य टोल सिस्टम'? यह नई व्यवस्था पूरी तरह से सैटेलाइट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर आधारित होगी। इसमें आपकी गाड़ी की लोकेशन को GPS (Global Positioning System) या भारत के अपने 'NavIC' नेविगेशन सिस्टम के जरिए ट्रैक किया जाएगा। जैसे ही आपकी गाड़ी किसी नेशनल हाईवे या एक्सप्रेसवे पर चढ़ेगी (Entry), सैटेलाइट उसे नोट कर लेगा। और जैसे ही आप हाईवे से नीचे उतरेंगे (Exit), सिस्टम गणना करेगा कि आपने कुल कितने किलोमीटर का सफर तय किया है। इसके बाद, आपके लिंक किए गए बैंक खाते से पैसा अपने आप कट जाएगा। इसके लिए हाईवे पर 'वर्चुअल गेट्स' (Virtual Gates) बनाए जाएंगे जो अदृश्य होंगे।

3. "जितनी दूरी, उतना पैसा": आम आदमी को बड़ी राहत मौजूदा टोल व्यवस्था में एक बड़ी खामी यह है कि अगर आप किसी टोल रोड पर सिर्फ 10 किलोमीटर चलते हैं, लेकिन अगला टोल प्लाजा 60 किलोमीटर के पैसे वसूलता है, तो आपको पूरा पैसा देना पड़ता है। यह एक तरह से नाइंसाफी है। लेकिन नए GNSS सिस्टम में 'Pay as you use' (जितना इस्तेमाल, उतना दाम) का फॉर्मूला लागू होगा। अगर आप 20 किलोमीटर हाईवे पर चले हैं, तो आपसे सिर्फ 20 किलोमीटर का ही पैसा लिया जाएगा। इससे छोटे सफर करने वाले वाहन मालिकों को बहुत आर्थिक फायदा होगा और उनकी जेब पर बोझ कम होगा।

4. नंबर प्लेट रीडर (ANPR) कैमरों की भूमिका इस सिस्टम में सिर्फ सैटेलाइट ही नहीं, बल्कि AI आधारित कैमरे भी अहम भूमिका निभाएंगे। गडकरी ने बताया कि हाईवे पर जगह-जगह 'ऑटोमैटिक नंबर प्लेट रिकग्निशन' (ANPR) कैमरे लगाए जाएंगे। अगर किसी गाड़ी में GPS सिस्टम काम नहीं कर रहा है या किसी ने जानबूझकर उसे बंद कर दिया है, तो ये कैमरे उस गाड़ी की नंबर प्लेट को स्कैन कर लेंगे। इसके बाद वाहन मालिक (Vahan Portal) के डेटाबेस से जानकारी निकालकर टोल का पैसा काट लिया जाएगा। यानी चोरी करने की गुंजाइश के बराबर होगी।

5. फास्टैग का क्या होगा? बहुत से लोगों के मन में यह सवाल है कि क्या फास्टैग बेकार हो जाएगा? शुरुआत में, यानी हाइब्रिड मॉडल के दौरान, फास्टैग और नई GNSS प्रणाली दोनों साथ-साथ चल सकती हैं। जिन गाड़ियों में पुराना सिस्टम है, वे फास्टैग का इस्तेमाल जारी रख सकती हैं। लेकिन 2026 के बाद सरकार का लक्ष्य धीरे-धीरे सभी को सैटेलाइट सिस्टम पर शिफ्ट करना है। नई गाड़ियों में कंपनियों द्वारा पहले से ही इन-बिल्ट GPS चिप्स लगाए जा रहे हैं, जिससे यह ट्रांजिशन आसान हो जाएगा।

6. ईंधन और समय की भारी बचत एक रिपोर्ट के मुताबिक, टोल प्लाजा पर रुकने और लाइन में लगने से हर साल हजारों करोड़ रुपये का ईंधन (Fuel) बर्बाद होता है। गाड़ियां स्टार्ट रहती हैं और धीरे-धीरे सरकती हैं, जिससे माइलेज कम होता है और प्रदूषण बढ़ता है। 'बैरियर-लेस टोलिंग' (Barrier-less Tolling) आने के बाद गाड़ियां अपनी रफ्तार में चलती रहेंगी। इससे केवल लोगों का कीमती समय बचेगा, बल्कि देश का ईंधन बिल भी कम होगा। गडकरी का मानना है कि इससे लॉजिस्टिक्स (माल ढुलाई) की लागत भी कम होगी, जिससे बाजार में सामान सस्ता हो सकता है।

7. निजता (Privacy) को लेकर चिंता और सरकार की तैयारी जब भी सैटेलाइट से गाड़ियों को ट्रैक करने की बात आती है, तो 'प्राइवेसी' का सवाल उठता है। आलोचकों का कहना है कि इससे सरकार को पता रहेगा कि कौन सा नागरिक कब, कहां जा रहा है। हालांकि, सरकार ने साफ किया है कि इस डेटा का इस्तेमाल सिर्फ टोल कलेक्शन के लिए किया जाएगा और इसे सुरक्षित रखा जाएगा। इसके लिए कानूनी ढांचे (Legal Framework) में भी बदलाव किए जा रहे हैं ताकि डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और इसका दुरुपयोग हो।

8. पायलट प्रोजेक्ट्स शुरू, अब बड़े बदलाव की बारी यह तकनीक कोरी कल्पना नहीं है। भारत में इसके पायलट प्रोजेक्ट्स (Pilot Projects) पहले ही शुरू हो चुके हैं। दिल्ली-गुरुग्राम एक्सप्रेसवे और बेंगलुरु-मैसूर एक्सप्रेसवे के कुछ हिस्सों पर इसका सफल परीक्षण किया गया है। इन परीक्षणों से मिले डेटा के आधार पर ही 2026 की डेडलाइन तय की गई है। सड़क परिवहन मंत्रालय अब इसे बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए टेंडर प्रक्रिया और सॉफ्टवेयर इन्फ्रास्ट्रक्चर को अंतिम रूप दे रहा है।

निष्कर्ष नितिन गडकरी की यह घोषणा भारत को विकसित देशों की कतार में खड़ा करने वाली है। 2026 के अंत तक भारतीय सड़कें केवल गड्ढा-मुक्त होंगी, बल्कि 'रुकावट-मुक्त' भी हो जाएंगी। हालांकि, तकनीकी चुनौतियां अभी भी हैं, जैसे ग्रामीण इलाकों में नेटवर्क की समस्या या पुराने वाहनों में GPS लगाना, लेकिन जिस रफ्तार से भारत डिजिटल हो रहा है, उसे देखते हुए 'डिजिटल टोल' का सपना हकीकत बनता दिख रहा है। अब बस इंतजार है उस दिन का जब हम कश्मीर से कन्याकुमारी तक बिना एक बार भी ब्रेक लगाए सफर कर सकेंगे।

 

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डिस्क्लेमर: इस पोस्ट में इस्तेमाल की गई सभी तस्वीरें AI (Artificial Intelligence) द्वारा बनाई गई हैं और केवल प्रतीकात्मक (Representational) उद्देश्य के लिए हैं।